"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में ।देखना पड़ता है मौका छुप के आने में ।किरण के संग संग ज़माना उठ जाता है"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में
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"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में ।देखना पड़ता है मौका छुप के आने में ।
किरण के संग संग ज़माना उठ जाता है
"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में
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